मी मराठा

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Tuesday, September 18, 2012

व्हिस्कीच्या पहिल्या पेगनं सुखावले सारे


व्हिस्कीच्या पहिल्या पेगनं सुखावले सारे
डाळ शेव फुटाणे शोधू लागले सारे

उडाली धांदल खणखणले ग्लास उधाणता वारे। व्हिस्कीचे।।
व्हिस्कीही अवली।
ओतितो बाटली ।
बेसावध जन। पीतापीता।।

काही आनंदी।
काही कष्टी।
काही ताशीर। जनांमध्ये।।

मॅनेजर ही खूष।
वेटर नाखूष।
टेबलक्लॉथ ओले। वाळता वाळेना।।

ग्लासही ओला।
कस्टमर ओले।
त्यातही फाटलेले। सोफ्याचे कुशन।।

ग्लासही झुके।
बाटलीही झुके।
समोरचाही झुके। बोलताना।।

खुर्च्याही फुल्ल।
कोचही फुल्ल।
खोळंबती जन। दारुच्या आशेने।।

बाटली फोडताना।
ग्लास भरताना।
अवचित घाला। विज मंडळाचा।।

झाला खोळंबा।
झाली पंचाईत।
तरीही आनंदी। मद्यलोक।।

कुणा आठवे गेलेले बालपण।
कोणी रमे त्या रम्य आठवणीत।
कुणी शोधू पाहे लपलेले सूर्यबिंब।
कोणी लकी प्रेमिक आतूनही चिंब अन बाहेरूनी चिंब।।

एका छोट्या मदिरभक्ताचा।
हा पहिला पेग।
चिंता उधाणून वाहे। याच्या चेहऱ्यावरून।।

जीव्हाही तृप्त।
मनही तृप्त।
आयुष्य तृप्त। भक्ताचे।।

चला चला उठा झणी।
करा पार्टीची तयारी।
दारेही उघडलेली। वाईन शॉपची।।

मदिरेच्या धुंदीत।
गेली संध्याकाळ।
घरोघरी चकणा तळण। कांदाभजीचे।।

उजाडता दिस।
मेंदु सुन्न सुन्न।
घ्या की हो उतारा। उतरावावया।|

पिण्याच्या गडबडीत।
श्री बोले श्रीमतींना।
येत्या रविवारी गाठ तु। माहेरचा मळा।।

आपण खूष।
मित्र खूष।
बायकोही खूष। मिळाले माहेरी जावया।।

अवली दारुड्याला।
भेटे त्याची बाटली।
तो ना सोडे आता। तिचा पदर।।

त्याची तिची भेट।
फक्त एका रात्रीची।
तीही सोसूनी कळ। ९८ रुपड्यांची।।

तुम्ही जन लकी।
रोज ४ पेग मुखी।
पुन्हा उतावीळ तुम्ही। फुकटची प्यावया।।

चला काढा थोडी हाल्फ।
पेग मारता येते बळ।
तुम्ही साकारलेल्या। कॉकटेलने।।

निर्व्यसनी त्या जनांना।
ना कळे मदिराभक्ताची व्यथा।
कैसी ही माया। मदिरेची।।

आपण प्रेमिक।
घेउन मिठीत।
रंग उडवू। मदिरेचे।।

आहो भाऊ राया।
मान्य तुमची माया।
परंतु आता थोडे । भुकेकडे बघा।।

दारुने टिंग।
आतून बाहेरून।
चकणेही सारे। विखुरलेले।।

तुम्ही म्हणालात।
पितान मधेच।
तुमचे पाकिट। लाटले चोराने।।

जाहलो दुःखी।
हातही कापे।
कसे भरु देवा। बिल हे सगळे ।।

आता करा त्वरा।
वेटरही आला।
सुरू झाल्या हाका। मॅनेजरच्या।।

तुम्ही फार थोर।
लावुनिया घोर।
बेरकी नजरा। चश्म्यातुनी।।

मालक पुढ्यात।
वेटर पुढ्यात।
धराहे बिल। पेमेंट टाका।।

मिळून निसटावे।
कहितरी घडावे।
हाउ दे खेळ चालु । विज मंडळाचा।।

पुर्व संचित जोडून।
दोन्ही करही जोडून।
करितो विनंती। आता तरी गुल्ल व्हा।।

आता तरी गुल्ल व्हा।
अंधारात गायब होउ द्या।
नाहीतर नशीबी पिउन। ग्लास प्लेट विसळणे।।

ही रडकथा नसे।
वा नसे बतावणी।
आहे ही आर्तता। तुमच्या मृत्युंजयाची।।

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